जिला अस्पताल में तंत्र मंत्र साधना से मृत आत्माओ को लेजाने का सिलसिला अब भी जारी,जानिए क्यो ओर कैसे ज्योत के रूप में ले जाई जाति है मृत आत्माए.....
नीमच//जिला चिकित्सालय में आज भी मृत आत्माओं को तंत्र मंत्र साधना से ज्योत के रूप में लेजाने का सिलसिला निरंतर जारी है यहां विभन्न समाज के लोग अपने मृतक परिजन की आत्मा को ज्योत के रूप में लेने आते है और उनकी सिरे अर्थात मूर्ति के रूप में स्थापन कर पूजा अर्चना की जाती है।बताया जाता है की परिवार में यदि किसी की असमय या दुर्घटना में मौत हो जाती है तो म्रतक की आत्मा भटकती रहती है और परिवार में बीमारी एवं ग्रह कलेश का कारण बनती है इसी मान्यता के चलते परिजन म्रतक की आत्मा लेने घटना या म्रत्यु स्थल पहुच ते है और तंत्र मंत्र साधना से अपने म्रतक परिजन की आत्मा को विशेष पूजा अर्चना कर ज्योत के रूप में लेजाकर मूर्ती स्थापना कि जाति है कुछ ऐसा ही नजारा शुक्रवार को जिला चिकित्सालय में देखने को मिला।जहा करीब दो से ढाई वर्ष पूर्व 18 वर्षीय युवक की उपचार के दौरान मौत होने पर उक्त मृतक के परिजन नीमच जिला अस्पताल पहुचे थे जहाँ करीब 5 विद्वान ज्ञाता पंडितों(भोपा महाराज)द्वरा तंत्र मंत्र से विशेष पूजा अर्चना कर मृतक की आत्मा को ज्योत के रूप में लेजाया गया।इस नजारे को देख जिला अस्पताल के मरीज सहित परिजन भी स्तब्ध थे।शुक्रवार को नीमच जिले के दामोदर पूरा से परिजन जिला अस्पताल पहुचे थे जहां परिजनों ने बताया कि बादल पिता गोपाल भील उम्र लगभग 18 वर्ष ने बीते 2 से ढाई वर्ष पूर्व अज्ञात कारणों के चलते पोइजन का सेवन कर लिया था जिसे जिला अस्पताल लाया गया था यहां उपचार के दौरान उसकी मौत हो गई थी। जिसके बाद से परिवार में सभी कार्यो में व्याधि उतपन्न हो रही थी,जिसपर जानकरों ने समाधान बताते हुवे मृतक बादल की ज्योत उसके बताए स्थान पर प्रतिमा के रूप में स्थापित करने का मार्ग बताया।जिसको लेकर परिजन आज बादल की मृत्यु स्थल जिला अस्पताल पहुचे ओर विद्वान ज्ञाता पुजारियों की मदद से तंत्र मंत्र के साथ पूजा अर्चना कर बादल की ज्योत अपने साथ ले जाई गई।मान्यता के अनुसार किसी व्यक्ति की असमय मौत होने पर एक अनोखी गातला परंपरा है जिसे गाता भी कहा जाता है। इसमें मृतक की मूर्ति बनाकर परिजनों द्वारा उसकी पूजा की जाती है।यह परम्परा बरसों पुरानी है। इस परम्परा के तहत विभिन्न समाज अपने जिस परिजन का असामयिक निधन हो जाता है, उसकी मूर्ति बनवाकर उसे पूजते है।ओर यदि कभी परिजन की दुर्घटना में मृत्यु होती है तो, घटनास्थल वाले स्थान से ही पुजारी के जरिए मृतक की आत्मा को ज्योत के रूप में मटकी या अन्य में लेजाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि पुजारी या म्रतक के परिजन के अंदर मृत व्यक्ति की आत्मा प्रवेश कर गाता (सिरा)यानी मूर्ति लगाने के स्थान को बताती है।ओर बताए गए निश्चित स्थान पर मूर्ति को गढ़वाया जाता है। ऐसे में पुरुष की मृत्यु को गाता तो वही महिला की मृत्यु होने पर मूर्ति को सती मानकर समय समय पर परिवार पूजा अर्चना करता है।ओर मूर्ती स्थापना तक विभिन्न धार्मिक आयोजन किये जाते है जिसके बाद सूर्य की पहली किरण के साथ पुजारी द्वारा बताए स्थान पर रीति-रिवाज से गाता( सिरे ) की स्थापना की जाती है।समाज का ऐसा भी मानना है की मृत परिजन को मूर्ति यानी सिरे के रूप में बैठने के बाद ही उनकी आत्मा को शांति मिलती है। साथ ही उन्हें देवता का स्थान भी मिल जाता है। समाज के अनुसार गातला(सिरा) लगाने के बाद ही परिवार में शुभ कार्य होते हैं । नही तो पारिवारिक ग्रह कलेश भी परिवार में चलते रहते है। इसके बाद ही परिवार में विवाह आदि शुभ कार्य हो सकते है।वर्षो पुरानी गातला परम्परा पर समय के हिसाब से आधुनिकता का रंग भी चढ़ गया है। पूर्व में पत्थर को तराशकर बनाए जाने वाली मूर्ति में समाज की पारंपरिक वेशभूषा और घोड़े के साथ बंदूक,भाला या तलवार लिए हुए दिवंगत को दिखाया जाता था। किंतु अब मूर्तियो में समय के अनुसार बदलाव किया गया है।