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धार्मिक आस्था में भी नजर आया सोशल डिस्टेंस। नमाज और पूजा में किया महिलाओं ने निर्देशो का पालन

सिंगोली। कोई भी प्रजातांत्रिक देश भले ही किसी परिस्थिति गुजरे वह अपने नागरिकों को धार्मिक आस्था की स्वतंत्रता से नहीं रोक सकता। यह अलग बात है कि विपरीत परिस्थितियों में वह उसे सिमित कर सकता है। शुक्रवार को ऐसा ही द्रष्टान्त पेश आया। जबकि सम्पूर्ण देश में कोरोना वायरस के खतरे को लेकर कोहराम मचा है, लेकिन धार्मिक आस्था भी एक दायरे में सही अपने परवान थी।
एक ओर जहां सुहाग के प्रतीक पर्व गणगौर को महिलाओं ने श्रृंगारित होकर पूजा अर्चना के साथ मनाया वहीं मुस्लिम समुदाय ने लागू प्रशासनिक आदेशो को सिरोधार्य कर शुक्रवार की नमाज अदा की।
जैसा सर्वविदित है, कोरोना वायरस के खतरे के मद्देनजर देश भर में सामुदायिक अंतराल ( सोशल डिस्टेंस) रखते हुए 21 दिवसीय लॉक डाउन पारित किया गया है। सभी तरह के सामूहिक आयोजन को प्रतिबंधित है। ऐसे में प्रत्येक व्यक्ति एक दूसरे के बीच दुरी बनाये रखने के लिए बाध्य है। स्वाभाविक है ऐसे दौर में आने वाले सामूहिक आयोजनो या तो निरस्त हो जाते है या दायरा सीमित हो जाता है।
यही कारण रहा कि शुक्रवार को हिन्दू समुदाय की महिलाओं ने गणगौर पर्व मनाते हुए सोशल डिस्टेंस का पालन करते हुए मंदिरों में पूजा अर्चना की तो मुस्लिम समुदाय के पुरुष वर्ग ने मस्जिदों और महिलाओं ने घरो में नमाज अदा की।
गणगौर पर्व पर महिलाओं ने अपने पति की लंबी उम्र के लिए प्रार्थना की। कहते है गणगौर का पर्व सुहाग का प्रतीक होता है। जिसे लेकर महिलाएं शीतला सप्तमी से 16 दिन तक प्रतिदिन गणगौर माता की आराधना एवं पूजा करती है। शुक्रवार को गणगौर के अवसर पर महिलाओं ने व्रत रखकर श्रृंगार किया व गणगौर माता की पूजा की। बाद में श्रृंगारित महिलायओं ने अलग अलग मंदिरों पर जाकर 16 गुनिए चढ़ाए और गणगोर के झाले दिये। साथ ही व्रत खोलने के पूर्व इसब्जी ओर गणगोर माता को मिठाई का भोग लगाया।

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