नीमच //लॉकडाउन के 30 दिन बाद अब यदि आपको घर में रहते हुए बोरियत महसूस होने लगी है, अपने धंधे-व्यापार की भारी चिंता हो रही है, आपको लगने लगा है कि अब दुकानें, मंडी, व्यापार, कार्यालय और सड़कें खोल देना चाहिए, तो आप यह मान चुके हैं कि नीमच बच गया है, आप अपने घर में बैठकर तीन-चार महीने बाद की ज़िंदगी की प्लानिंग कर पा रहे हैं और यह सोच रहे हैं कि इस लॉकडाउन ने आपका बहुत ज़्यादा नुकसान कर दिया है तो आपको बहुत-बहुत बधाई. आप दुनिया के बहुत कम खुशकिस्मत लोगों में से हैं जो ऐसा सोच पा रहे हैं...
!!____________________________________!!
विश्वभर में कोरोना से संक्रमित सत्ताईस लाख से ज़्यादा रोगी, 1 लाख 91 हजार से ज़्यादा लोगों की मौत, भारत में 23,000 मामले और 700 से ज़्यादा मौतें, मध्यप्रदेश में 1700 संक्रमित और 83 मौतें... इस दर्दनाक वैश्विक परिदृश्य के बाद भी यदि नीमच जिले में रहते हुए आप अपने भविष्य की चिंता कर पा रहे हैं, जिंदगी को महसूस कर पा रहे हैं.... तो आपको बहुत-बहुत बधाई...!
!!___________________________________!!
उन क्षेत्रों की कल्पना कीजिये जहां कोरोना संक्रमित रोगी मिले हैं... वहां के नागरिकों की मनःस्थिति जानिये, ऐसे शहरों में घरों में बंद अपने रिश्ते-नातेदारों से बात करिये, उनके मन के भाव जानिये, तो आपको पता चलेगा कि आप कितने खुश किस्मत हैं कि आप नीमच में हैं, जो कोरोना संक्रमण के हिसाब से ग्रीन ज़ोन में है और यहां फ़िलहाल कोई संक्रमित रोगी नहीं है...
!!___________________________________!!
उन शहरों में भी कुछ ही दिन पहले तक कोई रोगी नहीं था, कुछ ही दिन पहले तक कोरोना से कोई मौत नहीं हुई थी, वहां ही कुछ ही दिन पहले तक लोग बोर हो रहे थे और अपने व्यापार -व्यवसाय की चिंता कर रहे थे और खुद को सुरक्षित समझ रहे थे, बिलकुल वैसे ही जैसे आज हम, नीमच के नागरिक, खुद को समझ रहे हैं...
!!__________________________________!!
लेकिन आज संक्रमित क्षेत्रों के लोग घरों में बंद होकर उन लोगों को कोस रहे हैं जिन्होंने उनके शहर में लॉकडाउन तोड़ा... वो ख़ामियां और लापरवाहियां खोज रहे हैं जो उनके प्रशासन ने की... मानसिक स्थिति उनकी यह है कि उम्हें भविष्य की चिंता नहीं है, घर में शाम के खाने को लेकर उनकी कोई प्लानिंग नहीं है..., वे सिर्फ़ साबुन चाहते हैं क्योंकि उन्हें यह लग रहा है कि दिन भर में 30-40 बार हाथ धोने के बाद भी उनके हाथों में कुछ अटक गया है जो उन्हें संक्रमित कर सकता है... बिस्तर पर लेटे-लेटे वे सिर्फ़ अपनी सांसों पर ध्यान दे रहे हैं और 'कोरोना टेस्ट' कर रहे हैं कि उन्हें सांस लेने में कोई दिक्कत तो नहीं हो रही...? वो लोग जो सात दिन में एकाध बार आई सब्जी को भी साबुन से धो रहे हैं... वो लोग जो भीषण गर्मी में भी पानी उबालकर कुनकुना कर पी रहे हैं... वो लोग जो पूरी तरह से स्वस्थ हैं लेकिन उन्हें पैनिक अटैक हो रहे हैं क्योंकि उनके शहर में कोरोना आ चुका है. और इसीलिये... आप खुशकिस्मत हैं कि आप नीमच में हैं.
!!_________________________________!!!!
आप सोच पा रहे हैं कि कोटा से बच्चे आ सकते हैं तो इंदौर या गुजरात से क्यों नहीं? आप जीएसटी में छूट की मांग कर पा रहे हैं... आपके मन में अपने नुकसान के बदले सरकार से मुआवजा पाने की ललक है, आप लॉकडाउन खत्म होने के इंतज़ार में हैं, आप सरकार को बार-बार बताना चाहते हैं कि आपकी दुकान खुलना ज़रूरी है, आपको अपने ग्राहकों की चिंता है कि उन्हें गर्मी में पंखा खरीदना है, आपके ग्राहक मोबाइल में रीचार्ज नहीं करवा पा रहे... आपको अपनी अर्थव्यवस्था के साथ शहर की और देश की अर्थव्यवस्था की चिंता हो रही है तो आपने अभी कोरोना को समझा ही नहीं क्योंकि आप नीमच में हैं... सिर्फ़ एक मरीज़, जी हां, एक मरीज़ आते ही नीमच पूरा बंद हो जायेगा... ईश्वर ना करे कि हमारी 30 दिनों की मेहनत बेकार हो. किसी भी नेता के लिये यह कहना बहुत आसान है कि, 'हम मंडी खुलवा देंगे...,' 'अब हम व्यापारी और किसानों का कोई नुकसान नही होने देंगे'... ये लोकलुभावन डॉयलाग हैं जो चुनावों के दौरान तो अच्छे लगना चाहिए... लेकिन आज प्रश्न चुनाव का नहीं, जीवन और मरण का है... क्या कोई गारंटी ले सकता है कि नीमच में कोरोना नहीं फेलेगा? क्या कोई गारंटी ले सकता है कि नीमच में कोरोना हुआ तो उसे सौ प्रतिशत बचा ही लिया जायेगा...?
!!________________________________!!
हम इन तीस दिनों के लॉकडाउन टेस्ट में फ़ेल हो चुके हैं... लॉकडाउन में मिली छूट में हमने 'सोशल डिस्टेंसिंग' का पूरी तरह पालन नही किया... हम लॉकडाउन खोलने को लेकर तैयार नहीं हैं... भोपाल से जो लोग बयान जारी कर रहे हैं उन्हें इंदौर और भोपाल जैसे महानगर फुर्सत नहीं दे रहे हैं कि वे नीमच के बारे में ज़्यादा सोच सकें... नीमच एक छोटा जिला है... हम जिले के निवासियों को ही मिलकर यहां का खयाल रखना है.
!!_______________________________!!
खाना ना हो तो हम खाना मांगें और बीमार हो जायें तो उपचार मांगें... हो सकता है कि कई लोगों के घर में बीमार परिजन हों जिनकी आमदनी का एक बड़ा हिस्सा दवाइयों में जाता है. व्यापार-व्यवसाय बंद होने की दशा में उनके घर उनकी मासिक दवाइयों की मदद पहुंच सके, इसके लिए भी प्रशासन और समाज सेवी संस्थाओं को आगे आना होगा. इसके अलावा, सरकार और प्रशासन से हमें कोई और मांग नहीं करना चाहिए... केंद्र द्वारा जारी छूट की गाइडलाइन देश के लिये है... मगर अपने जिले में ज़िम्मेदारों को निर्णय यहां की परिस्थितियों के अनुसार ही लेना होगा ।
*~ कपिलसिंह चौहान*
9407117155
7089025360
*#copyrightkapilsingh*