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#Ratlam/बेटे के साथ मिलकर यूट्यूब ओर गूगल से बटोरी जैविक खेती की जानकारी।#mp_news

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ऱतलाम

शिक्षक ने एक हजार लगाकर चालीस हजार कमाए

लॉक डाउन में मिली छुट्टी से की जैविक खेती

बेटे के साथ मिलकर यू टयूब ओर गूगल से बटोरी जानकारी जैविक खेती की

आदिवासी किसानों के लिए शिक्षक बना प्रेरणा स्त्रोत


ऱतलाम जिले के आदिवासी अंचल के एक शिक्षक ने अपने बेटे के साथ मिलकर कोरोना महामारी के कारण जारी लॉक डाउन के कारण बंद स्कूल अवधि का फायदा कमाई करके उठाया। इस शिक्षक ने अपने डेड हेक्टयर की भूमि पर जैविक खेती से उगाई सब्जियां और कमाई की पूरे चालीस हजार की।सब्जियां उगाने में केवल उसका खर्च आया मात्र एक हजार।
आज इस शिक्षक किसान की जैविक खेती को आसपास के किसान सीखने के लिए आने लगे है तो सब्जी खरीदने के लिए लोग उसके खेत ही पहुचने लगे है ।
जैविक खेती के बारे में इस शिक्षक ने सुना था लेकिम कभी की नही थी। उसके मन मे लॉक डाउन के कारण मिले समय का उपयोग करने के लिए जैविक खेती को अपनाने का विचार आया। उसने अपने बेटे के साथ मिलकर यू ट्यूब ओर गूगल पर जैविक खेती के बारे में जानकारी जुटाई। ओर फिर उस जानकारी के आधार पर अपनी जमीन पर लगाई। लोकी, करेला, सहित अन्य सब्जियां। इस फसल में उसने जैविक खेती के तहत जैविक खाद का उपयोग किया। सब्जियों की खेती खूब लहला उठी। अपने खेत की सब्जियों को बेचने यह शिक्षक खुद आदिवासी अंचल से ऱतलाम आता था। और सब्जियां मंडी में बेचकर जाता था। कुछ समय बाद तो सब्जी व्यापारी उसके खेत से ही सब्जियां ले जाने लगे। और अप्रैल से शुरू हुआ यह काम उसे आज चालीस हजार की कमाई दे गया। उसके खेत मे आज भी ककड़ी, लोकी , तुरई, गिलकी की सब्जियो की फसल लहला रही है। दोनो पिता पुत्र अब शुरू से लेकर अभी तक जैविक खेती में ही दिनभर लगे रहते है।
यह शिक्षक है रतलाम जिले के रावटी विकास खण्ड के गाव नरसिंह नाका के प्राथमिक स्कूल के गोविंदसिंह कसावतओर उनके पुत्र है मनोज कसावत।
नरसिंग नाक गाव आदिवासी अंचल का छोटा सा गाव है।


बाईट डिस्क्रिप्शन

बाईट--1-- गोविंद ( शिक्षक किसान)
कुछ वर्षों पहले बालक ने डी एड कंप्लीट किया प्राथमिक शिक्षक के लिए भर्ती की संभावना को देखते हुए, लेकिन हर वर्ष संभावना टलती गई, फिर बालक की मुलाकात किसी नेट सर्फ करके ऑर्गेनिक कंपनी में कार्य करने वाले व्यक्ति से मुलाकात हुई इस दौरान उस कंपनी में कृषि के क्षेत्र में जैविक उत्पाद भी शामिल थे
और मेरा भी रुझान पैतृक संपत्ति में लगभग 1.5 हेक्टेयर भूमि मिली जिसे मैं पिछले कई वर्षों से रासायनिक खेती ही करता आ रहा था , कई वर्षों से जैविक खेती करने करने की अभिलाषा मन में थी, इसे मैंने केवल प्राथमिक तौर पर खेती के प्रति बच्चे में कुछ नया करने के उद्देश्य से अगले वर्ष केवल एक बीघा जमीन में गेहूं का उत्पादन किया
जिसमें मेरे द्वारा हर वर्ष की तुलना में 50% की रासायनिक उर्वरकों और दवाइयों का उपयोग किया फिर भी मुझे रिजल्ट लगभग रासायनिक फसल से सवा गुना अधिक मिला यानी जिस क्षेत्र से मुझे 9 या 10 क्विंटल गेहूं प्राप्त होता था उसी खेत से 12 क्विंटल के लगभग गेहूं मिला और मेरी रासायनिक खर्चे में भी बचत हुई।गेहूं निकलने के बाद मैंने सोचा अब प्रति वर्ष इसी प्रकार जैविक खेती पर ही जोर देना चाहिए। लेकिन इस बीच मेरे द्वारा यूट्यूब पर जैविक खेती के प्रति जिज्ञासा बढ़ती गई मैंने हर जैविक खेती करने वाले और करने का तरीका गौर से सुनना और देखता रहता था
इसे एक संयोग ही कहा जाए कि इस बीच यूट्यूब पर मुझे राष्ट्रीय जैविक खेती अनुसंधान केंद्र गाजियाबाद उत्तर प्रदेश के महानिदेशक डॉक्टर किशन चंद्रा का वीडियो जैविक खेती का देखने को मिला जिसमें उन्होंने मात्र ₹20 की एक छोटी सी डिब्बी और प्रति 100 लीटर पानी मैं 1 किलो गुड़ से रासायनिक खाद व दवाई उत्पादन करने का तरीका बताया गया। उसी तरीके को आजमाकर आज बढ़िया फसल ली । मैं अपने बालक का सहयोग लेकर आज एक बहुत अच्छी जैविक खेती की ओर बढ़ रहा हूं मेरा उद्देश्य है ज्यादा से ज्यादा किसान भाई इस खेती को पश्चिमी मध्यप्रदेश के आदिवासी बहुल बाजना रावटी क्षेत्र में करे और अपनी आर्थिक स्तिथि को मजबूत बनाये।

बाईट--2-- मनोज (शिक्षक किसान का पुत्र)

मेने डी एड किया है नोकरी के लिए कोशिश कर रहा था लेकिन उम्मीद नही है। पिता ने खेती और वो भी जैविक खेती की ओर रुझान किया और सिखाया। अब यही करने कॉम्त बना लिया है। और नए नए तरीके से खेती करने का प्रयास कर रहा हु।

बाईट--3--चुन्नीलाल ( गाव का अन्य किसान)
में गोविंद मास्टर के खेत पर फसल देखने आता हूं। उनके तरीके सीखता हु। वो कम लागत में ज्यादा फायदा कैसे ले रहे है यही सीखता हु ताकि हम भी लाभ कमा सके।

बाईट--4-- मुकेश राठौर (निवासी रावटी)
अपने साथी शिक्षक द्वारा जैविक खेती किये जाने की खबर मिली। हमने उनसे उनसे कुछ सब्जियां शुरुवात में ली। सब्जियों का स्वाद ही बहुत अलग लगा।आज हम 7 किलोमीटर दूर से सब्जी लेने उनके खेत पर आते है। यहां ताजी ओर जैविक खेती की पैदा हुई सब्जी मिलती है जो इम्युनिटी भी बढ़ाती है।

रतलाम ब्यूरो रिपोर्ट संतोष राठौड़

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