जबलपुर। सामान्य महिला वर्ग के आरक्षित कोटे में अन्य आरक्षित वर्ग
की महिलाओं को पीएससी परीक्षा 2017 में समायोजित करने को चुनौती देने वाली
याचिकाओं पर हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस अजय कुमार मित्तल और जस्टिस विजय
कुमार शुक्ला की युगलपीठ ने सुनवाई पूरी करने के बाद अपना फैसला सुरक्षित
कर लिया है। हालांकि विकलांग वर्ग की महिलाओं की सीटों में आरक्षित वर्ग की
महिलाओं की नियुक्ति के मसले पर बहस जारी रही।
अधिवक्ता ब्रह्मानंद पांडे ने कोर्ट को बताया कि कोर्ट ने एमपीपीएससी को
निर्देश दिए थे कि सामान्य वर्ग की महिलाओं के लिए किए गए होरिजेंटल आरक्षण
के नियम व सुको के दिशानिर्देशों का पालन करते हुए इनकी चयन सूची से
अनाधिकृत अभ्यर्थियों के नाम हटाकर फिर से चयन सूची जारी की जाए। लेकिन
एमपीपीएससी ने इस निर्देश का पालन नहीं किया। नये सिरे से बनाई गई चयन सूची
में भी अन्य आरक्षित वर्ग की महिला अभ्यर्थियों को सामान्य महिला वर्ग के
लिए आरक्षित कोटे में शामिल कर लिया गया। सितंबर 2019 में कोर्ट ने अन्य
आरक्षित वर्ग की महिलाओं को सामान्य वर्ग की महिलाओं के लिए आरक्षित कोटे
में समायोजित कर नियुक्ति करने पर रोक लगा दी थी। अधिवक्ता पांडे ने अंतिम
सुनवाई के दौरान तर्क दिया कि अधिक अंक पाने पर भी अन्य आरक्षित वर्ग की
महिला अभ्यर्थी को सामान्य महिलाओं के लिए आरक्षित सीटों पर नियुक्त नहीं
किया जा सकता। ओवरऑल आरक्षण वहां लागू होता है, जहां महिलाओं के लिए आरक्षण
का कोई विशिष्ट नियम न हो। लेकिन मप्र में 50 फीसदी महिला सीटें सामान्य
वर्ग के लिए होरिजेंटली आरक्षित हैं। सुनवाई के बाद कोर्ट ने अपना निर्णय
बाद में सुनाने का निर्देश दिया।
यह है मामला
इंदौर की प्रांजलि केकरे, डॉ. दीप्ति गुप्ता व ग्वालियर की डॉ. लक्ष्मी
तिवारी ने याचिकाएं दायर कर कहा कि सभी ने मप्र लोक सेवा आयोग (एमपीपीएससी)
की ओर से 2017 में आयोजित असिस्टेंट प्रोफेसर भर्ती परीक्षा दी।
याचिकाकर्ताओं के अंकों के आधार पर उनका चयन सामान्य महिला वर्ग के लिए
आरक्षित पदों पर किया जाना था लेकिन एमपीपीएससी ने याचिकाकर्ताओं के पात्र
होने के बावजूद उनकी जगह अन्य आरक्षित वर्ग की महिला अभ्यर्थियों के नाम
चयन सूची में शामिल कर लिए।