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MP के नीमच जिले में अफीम तस्करों से भी ज्यादा दहशत में हैं धनिया और अजवाइन के व्यापारी....


(कपिलसिंह चौहान)
नीमच। नीमच जिले में जहां एक तरफ तो भले अफीम तस्करों तक को 'धंधा' करने के लिये उपयुक्त माहोल मिल रहा है लेकिन दुसरी और यहां के कृषि उपज मंडी व्यापारी स्वयं को अजवाइन और धनिया कारोबारी कहने तक में हिचकिचा रहे हैं. धनिया और अज़वाइन के व्यापारी यहां चोरी छुपे व्यवसाय करने को मजबूर हैं और यही कारण है की पिछले कुछ वर्षों में नीमच से एक्सपोर्ट होने वाली अजवाइन का व्यापार लगभग ना के बराबर रह गया और इस पर कोटा, रामगंज मंडी आदी क्षेत्र के व्यापारीयों का कब्जा हो गया.
 
जहां देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने, उत्पादन, व्यापार- व्यवसाय बढ़ाने और कारोबारीयों को व्यापार की आसानी के लिये सरकारें 'ईज ऑफ डूइंग बिजनेस' के कई जतन कर रही है वंही नीमच जिले के अजवाइन व धनिया व्यापारी जानकारी के अभाव, भ्रम और कार्यवाही के डर की वजह से दहशत में हैं और उनका कारोबार मंदी में. इसकी वजह 'फ्युमिगेशन' की पारम्परिक 'जुगाड़' तकनीक है.
 
विश्व के कई देशों में विभिन्न तरह के खाद्य पदार्थों, फसलों व फलों आदी की शेल्फ लाईफ बढा‌ने के लिये फ्युमिगेशन किया जाता है. इसी तरह उपज का कालापन दूर करने, एंटीबेक्टीरीयल गुणों, बारीश अथवा एक्सपोर्ट के दौरान समुद्री पानी की नमी से बचाने, किटाणु खत्म करने और बेक्टेरियल कंटेमिनेशन को रोकने आदी के उद्देश्य से धनिया-अजवाईन में भी फ्युमिगेशन किया जाता है जिसमें सल्फर का इस्तेमाल होता है. फ्युमिगेशन प्रीजर्वेशन की एक प्रक्रिया है. 'फूड सेफ्टी एंड स्टेंडर्ड्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया' (fssai) ने भी सल्फाईट्स के समुह को परिभाषित करते हुए सल्फर डाई ऑक्साईड, सोडियम सल्फाईट, सोडियम हायड्रोजन सल्फाईट आदी को प्रिसर्वेटीव्ह्स मानते हुए एडिटीव बताया है. जिस तरह से खेत में खड़ी फसल में मानक मात्रा में इंसेक्टीसाईड्स और पेस्टीसाईड्स का उपयोग होता है उसी तरह उपज के गोदामों में फ्युमिगेशन होता है. जिस तरह सब्जीयों- फलों इत्यादी को कोल्ड स्टोरेज में रख कर उनकी शेल्फ वेल्यु बढाई जाती है उसी तरह से 'सल्फर फ्युमिगेशन' भी अजवाइन और खड़ा धनिया की शेल्फ वेल्यु बढ़ाता है.
 
भारत से न्युजिलेंड में निर्यात होने वाले अंगुरों में कार्बन डॉई ऑक्साईड और सल्फर से फ्युमिगेशन किया जाता है. चाइना में कई सारी ओषधीय जड़ी बुटीयों और मसालों को पारम्परिक तरीके से सल्फर 'फ्युमिगेशन' किया जाता है. 'फ़्युमिगेशन' का अर्थ है धुआं देना या धूमन. नीमच में व्यापारीयों द्वारा अपनाई जा रही फ्युमिगेशन की पारम्परिक जुगाड़ तकनीक को 'सल्फर पॉलिश', 'भट्टी लगाना', 'सल्फर की मिलावट' आदी नाम दे दिये गए. जबकी इस प्रक्रिया में सल्फर ना तो धनिया या अज़वाइन की उपज में मिलाई जाती है और ना ही सल्फर, उपज के सीधे सम्पर्क में आती है बल्की नीचे सल्फर को जलाकर कूछ उंचाई पर धनिया या अज़वाइन की उपज को इस सल्फर के धुएं के बीच से गुज़ारा जाता है. यह गर्म धूंआ उपज की शेल्फ लाईफ को तीन गुना बढ़ाता है, जल्दी सुखा कर नमी खत्म करता है और रंग साफ करने के साथ किटाणुओं को खत्म कर देता है.
 
भारत में सल्फर फ्युमिगेशन FSSAI के नियत मानकों और जायज सीमा में तो मान्य है लेकिन मिलावटखोरों द्वारा खाद्य मसालों व कई तरह की उपज में की जा रही रंगो आदी की मिलावट के चलते इस फ्युमिगेशन की प्रक्रिया को भी शक के दायरे में लाकर खाद्य विभाग से जुड़े अधिकारी पिछले कई वर्षों से व्यापारीयों का शोषण करते आए हैं. कार्यवाही के डर से व्यापारीयों द्वारा छूप-छूप कर या चोरी छिपे किये जा रहे फ्युमिगेशन के बावजुद आज तक इन 'भट्टीयों' से लिये गये अजवाइन के सेम्पल्स में आम तौर पर fssai के मानकों के विरुद्ध सल्फर की अधिक मात्रा नही पाई गई और ना ही फ्युमिगेशन की वजह से सेम्पल अमानक पाए गए. ओर तो ओर अरब और युरोपीय देशों में भेजा गया यह 'भट्टी का माल' कभी इस वजह से रिजेक्ट भी नही हुआ, जबकी विदेशों में आयात किये जाने के मानक बहुत उंचे हैं. उसके बावजुद इन व्यापारीयों के लिये 'ज़हर के कारोबारी', 'जल्लाद', 'मौत के सौदागर' जैसी उपमाएं गढ़ ली गई और अब रासुका के डर से कई व्यापारी अपना कारोबार बंद कर के बैठे हैं.
 
वंही जिले के वो किसान जिनकी उपज कम गुणवत्ता की हो जाती है, काली पढ़ जाती है या पानी में भीग जाती है उन्हे नीमच मंडी में खरीददार व्यापारी नही मिल पाते और वे किसान राजस्थान की कोटा आदी अन्य मंडीयों का रूख करते हैं. वहां के व्यापारीयों द्वारा यह माल इसलिये खरीद लिया जाता है क्योंकी वंहा फ्युमिगेशन अथवा भट्टी पर कारवाईयां नही होती.
 
सार यही है की खाद्य पदार्थों में मिलावटखोरों के लिये फांसी की सजा का प्रावधान होना चाहिये, दोषीयों के खिलाफ कार्यवाही होना ही चाहिये लेकिन उसके साथ ही नीमच के जनप्रतिनिधीयों और जिला प्रशासन को यह भी चाहीये की व्यापारीयों और किसानो के हित में पारम्परिक फ्युमिगेशन की भ्रांतियों को दूर करने और व्यापारीयों को fssai के मानकों के अनुरूप फ्युमिगेशन प्रोटोकोल से परिचित कराने हेतु शिवीरों और परिचर्चाओं, ट्रेनींग सहित जागरुकता के कार्यक्रमों का आयोजन करना चाहिये. fssai को फ्युमिगेशन की सही प्रक्रिया और मशीनरी की जानकारी भी जारी करना चाहिये उसी तरह जिस तरह विभिन्न देशों में इस पर रीसर्च हो रही है. साथ ही तब तक दहशत के इस माहोल को खत्म करने के लिये 'भट्टी चलाने वाले' व्यापारीयों के खिलाफ अनावश्यक कार्यवाहीयों को खत्म कर व्यापारीयों के लिये "ईज़ ऑफ डुइंग बिज़नेस" का वातावरण तैयार करना चाहिये.
 
‍~कपिलसिंह चौहान
7089025360
9407117155

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