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असफल साबित रही, कलेक्टर राजे की प्रशासनिक दक्षता, मिलावट के खिलाफ सख्ती के साथ माफियाओं से हुई बड़ी सांठगांठ

नीमच//मध्यप्रदेश में 15 माह के बाद अचानक सत्ता परिवर्तन और भाजपा की वापसी के बीच नीमच में कांग्रेस सरकार मैं नवागत कलेक्टर के रूप में जितेंद्र राजे की आमद हुई, इस दौरान देश और दुनिया में कोरोना जैसी महामारी भी अपने पांव पसार चुकी थी, ऐसे में जिलाधीश के सामने अहम जिम्मेदारी दक्षता के साथ जनहित में प्रशासनिक निर्णय लेना आवश्यक हो जाता है, लेकिन कोरोना के बीच लॉकडाउन के दौरान प्रशासनिक स्तर पर लिए गए, किसी भी निर्णय पर राजे स्थिर नजर नही आए, शहर के बाजारों को बार-बार बंद करवाना और खुलवाने की समय की घोषणा करना हो या फिर नीमच के हॉस्पिटलों को लेकर डॉक्टरों को लेकर नीतियां बनानी हो या फिर स्थानीय मजदूरों को छुड़वाने का मामला हो, किसी भी सूरत में कोई ठोस निर्णय नहीं ले पाने के चलते कलेक्टर राजे की कार्य दक्षता पर प्रश्नचिन्ह उठते रहे...
ऐसे में शिवराज सरकार द्वारा कलेक्टर जितेन्द्र सिंह राजे के तबादले के बाद विशेषग्यों का विश्लेषण भी सामने आया है, जहाँ कलेक्टर जितेंद्र सिंह राजे की प्रशासनिक दक्षता और उनके क्रिया कलापों को लेकर सवाल उठ रहे है...जिसे नजर अंदाज नही किया जा सकता, कोरोना काल में लिए गए, असफल निर्णयों की बात करें, या मिलावट खोरों के खिलाफ कार्यवाही में पक्षपात की, हर दिशा में कलेक्टर जितेंद्र सिंह राजे का कार्यकाल कई सवालों को पीछे छोड़ गया है...
कोरोना काल के दौरान शहर में खाद्य सुरक्षा अधिकारी एवं सामाजिक संस्थाओं के माध्यम से शहर में संचालित भोजन व्यवस्था और उसके बाद भोजन फंड के बिल लगाने की चर्चाओं के बाद अचानक भुगतान पर रोक लगाना, और इसके साथ ही मिलावटखोरी के विरुद्ध अभियान के तहत की गई, अधिकांश कार्यवाहियां भी कलेक्टर राजे के कार्यकाल की सुर्खियां रही, जहाँ व्यापारी को छोड़ मुनीम और अन्य कर्मचारियों को आरोपी बनाना आरोपी बनाने के बाद किसी व्यापारी का नाम काटना और बड़े मिलावटखोरों के खिलाफ कोई भी एक्शन नहीं लेना एवं खाद्य अधिकारी संजीव मिश्रा पर लेनदेन के कई दर्जनों मामले सामने आना नीमच शहर में कई अवैधानिक मिलावटखोरों के कारोबार धड़ल्ले से संचालित होना...
जिला प्रशासन की संदेहास्पद कार्यप्रणाली को साफ तौर पर बंया करता है...
जहाँ बाकलीवाल जैसे तेल माफिया, व योगेश गर्ग, राजेश धींग (रोहित ट्रेडर्स) जैसे मसाला उपज के बड़े मिलावट खोर किसी भी प्रकार की प्रभावी कार्यवाही से दूर रहे...
यहाँ तक की राजेश धींग (रोहित ट्रेडर्स) जैसे मिलावट के बड़े कारोबारियों पर खाद्य सुरक्षा विभाग की मेहरबानी देखने को मिली...साफ जाहिर है, मिलावट के खिलाफ जितनी सख्ती से कदम उठाया गया, उतनी बारीकियों से माफियाओं के साथ सांठगांठ को भी अंजाम दिया गया, जिसकी परते खुलना फिलहाल शेष है...इसके साथ ही जिले में रेती का अवैध कारोबार भी कलेक्टर जितेंद्र राजे के कार्यकाल का अहम मुद्दा रहा, जिसको लेकर किसी भी प्रकार की सख्त कार्यवाही रेत माफियाओं के खिलाफ उनके कार्यकाल में नही हुई, नतीजा जिले में रेत माफियाओं की सक्रियता जारी रही, और सांठगाठ के रास्ते होकर आम आदमी तक पहुँचने वाली बजरी काला बाजारी में आसमान छूने लगी...ऐसे में कलेक्टर जितेंद्र सिंह राजे की कार्रवाई को लेकर मुख्यमंत्री द्वारा जिले के कार्यकलापों की प्रशंसा एवं अचानक खाद्य सुरक्षा अधिकारी के स्थानांतरण को लेकर कलेक्टर की व्यक्तिगत मध्यस्था की सूचना सरकार में बैठे जिम्मेदारों तक पहुंची, तब आनन-फानन में वीडियो कॉन्फ्रेंस में सीएम की गंभीरता के चलते कलेक्टर का स्थानांतरण होना, कई तरीके की बातों को जन्म दे रहा है, ऐसा कहना कदापि गलत नहीं कि नीमच जिले में जितेंद्र राजे के कार्यकाल में हुए आदेश एवं निर्देश एवं पत्र व्यवहारों के चलते कई ऐसे मामले उदाहरण के तौर पर सामने है, जिनमें कलेक्टर द्वारा एफआईआर तक के आदेश करने के पत्र व्यवहार के बाद भी स्थानीय थाने की पुलिस द्वारा कार्रवाई में एक्शन नहीं लेना और कलेक्टर के आदेशों में राज्य सरकार की आड़ लेकर आरोपी को बख्शा जाना जैसे मामले निकलकर सामने आए है,
जहाँ जांच एजेंसियों को कलेक्टर जितेंद्र राजे के कार्यकाल में हुए आदेश निर्देशों की जांच करने की आवश्यकता है....!

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