जनप्रतिनिधियों की महत्त्वकांशाओ के बीच, मझधार में खड़े कारोबारी की टूटी कमर....आबकारी के नियम और केन्द्र की नीति के विपरीत...कर दिया व्यपारियों को आश्वस्त...? नीतियों में विसंगतियां पोस्ता कारोबारियों के लिए बन रही "घातक"......पांच करोड़ में मिला ठेका, पेशगी में दी गई फार्च्यूनर, फिर भी बैरंग लौटे "माननीय"..... क्या स्वयं के हितों को साधने के लिए व्यापरियों के कंधों पर रखी जा रही "बंदूक".....?
नीमच//पोस्ता छनाई को लेकर केंद्र और राज्य सरकार की दोहरी नीतियों और इस पर स्थानीय जनप्रतिनिधियों की महत्त्वकांशाओ ने प्रदेश की सबसे बड़ी पोस्ता मंडी को न सिर्फ कारोबारी दृष्टि से प्रभावित किया है, बल्कि सामंजस के अभाव में असमंजस में पड़े व्यापारियों की कमर भी टूटी है, कारोबार में सामने आ रही विभिन्न प्रकार की विसंगतियां और इस पर सरकार का रवैया व्यापरियों के साथ अब किसानों के लिए भी समझ से परे होता जा रहा है, जहाँ इन विसंगतियों का प्रभावी असर किसानों पर भी देखा गया, जिन्हें अपनी उपज बेचने के लिए पिछले कुछ समय से यहाँ वहाँ भटकना पड़ा और इसके बाद भी उचित दाम पोस्ता के किसानों को नही मिल सके...? हालांकि स्थानीय जनप्रतिनिधियों की मध्यस्थता के बाद सरकार और पोस्ता कारोबारियों के बीच बैठे समन्वय से नीमच की पोस्ता मंडी दोबारा अपने अस्तित्व में आती हुई नजर आएगी...लेकिन केंद्र और राज्य सरकार की दोहरी नीतियों ने कारोबारियों की गर्दन पर तलवार अब भी लटका रखी है, जिसके बीच स्थानीय जनप्रतिनिधियों की महत्त्वकांशा और लालसा एक महत्त्वपूर्ण किरदार निभा रही है...जहाँ खामियाजा अंततः पोस्ता कारोबारी को ही भुगतना है...और इसका सटीक उदाहरण पिछले दिनों नीमच की पोस्ता मंडी के दो कारोबारी के खिलाफ हुई सीबीएन की कार्यवाही के रूप में सामने आ चुका है...जिन्हें नष्टीकरण की परिभाषा शायद ठीक ढंग से समझाई नही गयी...? बतादें की केंद्र सरकार की और से जारी आदेश के अनुसार देश भर में पीएस2 लाइसेंस को रद्द किया जा चुका है, जिसके तहत डोडाचूरा नष्टीकरण की प्रक्रिया के साथ ही पोस्ता छनाई भी पूर्णतः प्रतिबंधित है...इधर स्थानीय जनप्रतिनिधियों की पहल पर मध्यप्रदेश सरकार की और से व्यापरियों को दी गयी राहत में तर्क यह है, की पोस्ता मंडी सुचारू रूप से चले और पोस्ता छनाई के दौरान निकले पदार्थ को मंडी प्रशासन की निगरानी में नष्ट किया जाए...अब ऐसे में मालवांचल के किसानों और व्यापारियों के हितैषी बनने वाले स्थानीय विधायकों और सांसद की सिफारिशों पर मिली पोस्ता छनाई की यह छूट सरकारों की अलग-अलग नीतियों में विसंगतियों के चलते कारोबारियों के लिए कितनी खतरनाक साबित हुई है, या आगे भी हो सकती है, इसकी गम्भीरता के बारे में भी शायद विचार नही किया गया...? मंडियों में पोस्ता खरीदी, छनाई और इसके बाद मादक पदार्थ के नष्टीकरण कि प्रकिर्या को अब तक कितना पारदर्शी रखा गया है, यह बताने की आवश्यकता नही है...? लेकिन इन सब के बीच यहाँ सरकारों का रुख भी स्पष्ट नही है...लिहाजा राज्य सरकार की हरी झंडी पर सीबीएन के खतरे का निशान भी निरन्तर पोस्ता कारोबार में बना हुआ है...ऐसे में पोस्ता कारोबारियों के सामने स्थिति अब भी असमंजस भरी है...
जहाँ स्थानीय जनप्रतिनिधियों ने अपने हितों को ध्यान पहले रखते हुए सरकार के समक्ष पोस्ता खरीदी, छनाई और नष्टीकरण को लेकर पहल तो की लेकिन आबकारी के गजट नोटिफिकेशन और केंद्र सरकार की नीतियों के विपरीत जाकर... जिसके नतीजे के रूप में हाल ही में मंडी के दो पोस्ता कारोबारियों के खिलाफ हुई सीबीएन की कार्यवाही को देखा जा रहा है...जहाँ पोस्ता कारोबार में सीबीएन के नियमों और तय मापदण्डो के विपरीत कारोबारियों द्वारा छनाई के बाद निकले मादक पदार्थो का भंडारण किया गया था,,, इस पूरी कार्यवाही के पीछे चौकानें वाली वजह यह सामने आ रही है, की व्यपारियों को स्थानीय जनप्रतिनिधियों के माध्यम से सरकार और आबकारी विभाग की और से प्राप्त महज आश्वासन के बाद पोस्ता खरीदी और इसके बाद छनाई की प्रक्रिया को अंतरिम रूप दिया गया था, जिसके नष्टीकरण से पूर्व ही केंद्रीय नारकोटिक्स ब्यूरो की टीम ने अपना एक्शन मोड़ दिखा दिया...! "बताया जा रहा है, की सीबीएन की इस बड़ी कार्यवाही के बाद सबंधित व्यापरियों की और से क्षेत्र के माननीय को मामले में सेटलमेंट के लिए तकरीबन पांच करोड़ का ठेका भी दिया गया...जिसकी पेशगी के रूप में सबसे पहले एक लग्जरी फार्च्यूनर माननीय को उपहार स्वरूप भेंट की गई...और इसके बाद मामले में माननीय की और से व्यापरियों के बचाव में आगे कदम उठाया गया, सूत्रों के मुताबिक इस मामले में सीबीएन की सख्ती और ईमानदारी के आगे माननीय की भी नही चली और उन्हें बेरंग लौटना पड़ा...!"