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अखिल भारतीय साहित्य परिषद की पुस्तक समीक्षा और कवि गोष्ठी सम्पन्न.....

नीमच//अखिल भारतीय साहित्य परिषद् द्वारा अभिनव पहल करते हुए नीमच जिले के दो कवियों की तीन कृतियों की समीक्षा गोष्ठी आयोजित की गई | सिंगोली निवासी जिले के वरिष्ठ कवि जमनेश नागोरी की काव्यकृति “मिटटी की महक” की समीक्षा करते हुए अजय जिंदल ने कहा कि किसी भी रचनाकार की रचना तभी सार्थक मानी जाती है जब पाठक को यह लगे, अरे.. यह विचार तो मेरे अपने से लगते हैं। आम पाठक की पीड़ा को यदि उचित शब्द मिल जाएं तो उसी में रचनाकार की सफलता निहित है। कवि जब दैनंदिन के अपने विविध संघर्षों से रूबरू होता है तब उसके अनुभव रात दिन उसके मन को मथते हैं फिर स्वत: ही कविता का सृजन होता है और उससे, रचनाकार को एक सुखद अनुभूति होती है। मिटटी की महक इसी तरह की रचना है | श्री नागोरी के मुक्तक किसी एक सांचे में ढले हुए नहीं हैं, कहीं थोड़ा रूमानी हैं, कहीं सामाजिक असमानता का उल्लेख करते हैं तो कहीं व्यक्तियों में व्याप्त पाखंड पर टिप्पणी है जमनेश की दूसरी पुस्तक “अक्षर अक्षर आलोक” की समीक्षा करते हुए अम्बिकाप्रसाद जोशी ने उनकी रचना से कविताओं को उद्धृत करते हुए कहा कि इस कविता संग्रह में उन्होंने अपने मुक्तकों में जीवन के हर क्षेत्र को छुआ है | उनके मुक्तकों को पढ़कर जीवन के विभिन्न पहलुओं का अहसास होता है | लेकिन कविताओं में हिंदी के अतिरिक्त उर्दू के शब्दों का प्रयोग कई बार भाषा की दृष्टी से काव्य रस में व्यवधान उत्पन्न करता है | अक्षर अक्षर आलोक की समीक्षा करते हे सत्येन्द्र सक्सेना ने कहा कि अक्षर अक्षर आलोक काव्य संग्रह की रचनाओं ने संग्रह के नाम को सार्थक किया है | रविशंकर वर्मा का कविता संग्रह की समीक्षा में ओमप्रकाश चौधरी के विचार थे कि “ जिन्दगी के हर क्षण को जिया है मैंने “ पुस्तक अपने नाम को सार्थक करती है | रचनाएं पढ़ते समय महसूस होता है जैसे हम जीवन यात्रा को जी रहे हैं | इस कविता संग्रह में कवि ने जीवन के हर रंग प्रेम,आशा , पारिवारिक सम्बन्ध , विचार ,प्रकृति के विविध रंग सावन की फुहार ,बसंत ,पर्यावरण और आध्यात्म जैसे हर विषय को छुआ है। प्रेम की अभिव्यक्ति कविता में कवि मौन की भाषा बताते हुए लिखते हैं –मौन की भी एक भाषा है ... प्रेम, गुस्सा, सुख ,दुःख सभी कुछ व्यक्त करने की भाषा...कुल मिलाकर कविता संग्रह मानव जीवन चक्र का रंगीन गुलदस्ता है |सत्येन्द्र सक्सेना का विचार था कि श्री वर्मा की पुस्तक जीवन ,परिवार से लेकर पर्यावरण एवं आध्यात्म तक कविताओं के माध्यम से जीवन के विभिन्न रूपों से परिचित कराती है | कवि गोष्ठी का प्रारम्भ करते हुए श्रीमती रेणुका व्यास ने अपनी कविता में एक ऐसे व्यक्ति से मिलने की कल्पना की जो “हार सिंगार की तरह झरे /जिसे पाकर मन फूला न समाए / मिल गया जब मैं उससे जिससे मेरे पुरखे गंगा स्नान करे | इसके पश्चात् उन्होंने श्रीराम पर एक सुंदर गीत भी प्रस्तुत किया |रविशंकर वर्मा ने जीवन यात्रा में जो कुछ सीखा उसे कविता में कुछ यूँ कहा “आओ मान लें जीवन एक कला है /आओ जीवन में पूर्णता लाने का प्रयास करें /हाँ हम मनुष्य नही कलाकार बनकर जियें |” सत्येन्द्र सक्सेना ने श्रीराम को समर्पित अपनी रचना में कहा -“सत्य है ,यथार्थ है यही तो श्रीराम हैं /विचार है ,आचार है यही तो श्रीराम हैं | कीर्ति कुमार चौधरी ने अपने मालवी व्यंग के माध्यम से बुजुर्ग माता पिता को छोडकर विदेश जा बसे बेटे की अच्छी खबर लेते हुए रचना पाठ किया –“सोच थारे बी छोड़ी देता बालपन में /कूण खवाडतो, पिवातो ,पालतो पोसतो,ने पढातो ,लिखातो “अम्बिका प्रसाद जोशी ने माँ को याद करते हुए कहा “ माँ झूमता है तब मन जब तुम होती हो पास दाना ,पानी नही तुम्हे पाने की है अरदास | बस तुम आ जाओ खूब लगी है भूख और प्यास |तुम्हारे स्वागत में चहचहा कर घोली है मिठास | बाबूलाल गौड़ ने अपनी कविता के माध्यम से मकान कैसा हो यह बताते हुए कहा –“भावों की दीवारें हो,छत हो आशीर्वाद की,फर्श हो ममता भरा ,बैठक हो सम्भावों भरा ,चार दीवारी हो ही न ,सीमा हो मर्यादा की |गोष्ठी के प्रारम्भ में साहित्य परिषद के जिला अध्यक्ष ओमप्रकाश चौधरी ने सभी उपस्थित कवियों का स्वागत किया | गोष्ठी का संचालन सत्येन्द्र संक्सेना ने किया तथा आभार पंकज दुबे ने व्यक्त किया | वर्षा की फुहारों के बीच रविशंकर वर्मा के निवास पर फिर मिलने के विचार के साथ गोष्ठी का समापन हुआ |

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