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"प्रतिष्ठा" खरीदी नही बनाई जाती है...बिककर छपने वाले अखबारों में झूठे आरोप मढ़ने से...गिरती नहीं किसी की "शख्सियत".... समाज के बीच जब बढ़ता है "कद" तो...रचे जाते है हत्या के नापाक षडयंत्र और की जाती है, प्रतिष्ठा को धूमिल करने की कोशिश... टुकड़े-टुकड़े गैंग का नापाक मंसूबा...हत्या की साजिश में मिली नाकामी तो क्या अब कथित शिकायतों को बनाया हथियार...? क्या समाज सेवी अशोक अरोरा के खिलाफ जन्म ले रही है, एक और साजिश...?

नीमच//दौलत से अपने लिए सब कुछ खरीदा जा सकता है,,,लेकिन भावनाएं और सच्चा समर्पण नहीं... जहां कोई एक नहीं बल्कि हजारों लाखों की संख्या में लोग आपके प्रति समर्पित रहते है...तो आपकी यह शौहरत दौलत से खरीदी हुई नहीं बल्कि समाज के बीच आपके आचरण, हर आम और खास के साथ किया गया आपका सामान व्यवहार और धर्म के प्रति सच्ची श्रद्धा का परिणाम होता है...फिर चाहे कोई आपकी आलोचना करे या बिककर छपने वालें अखबारों के जरिए आरोप मढ़े...यह सब हमारी ख्याति से असंतुष्ट और विरोधी खेमे से जुड़े लोगों का एक असफल प्रयास कहा जा सकता है...जिससे किसी की शख्सियत पर कोई फर्क नहीं आ पड़ता...
हां यदि किसी को फर्क पड़ता है...तो वो समर्पण का भाव रखने वाले उन असंख्य लोगों को...जिनके बीच ये "मान प्रतिष्ठा" खरीदी नही बल्कि बनाई गई है...!
लेकिन जब एक पूरे शहर की मोहब्बत किसी को मिलती है, तो "घात" लगाए बैठे "कब्र बिच्छुओं" की साजिशे जन्म लेने लगती है, और घिनौने कृत्य को अंजाम देने तक पर उतारू हो जाते है... कुछ ऐसा ही वाकया मालवा मेवाड़ के प्रतिष्ठित समाज सेवी अशोक अरोरा "गंगानगर" के साथ कारीत हुआ था, जब उन्हीं के अपने भाई ने कुख्यात तस्कर बाबू सिंधी के साथ मिलकर लाला पठानों के जरिए उनकी हत्या का असफल प्रयास किया...षडयंत्र पूर्वक अंजाम दिए गए इस प्राणघातक हमले में समाज सेवी अशोक अरोरा "गंगानगर" तो मां भादवा के आशीर्वाद और असंख्य लोगों की दुआओं
से बाल-बाल बच गए...और इस कायरना हरकत को अंजाम देने वालों में शामिल मुख्य सरगनाओं सहित गैंग के सदस्यों को सलाखों के पीछे धकेल दिया गया...लेकिन कानून का हंटर खाकर भी समाज सेवी "अशोक अरोरा" के प्रति द्वेषता रखने वालों की घिनौनी साजिशों का अंत फिर भी नहीं हुआ और उनकी प्रतिष्ठा को धूमिल करने का एक खोखला और नापाक प्रयास टुकड़े टुकड़े गैंग के सदस्यों ने मिलकर एक बार फिर से किया...और इस बार झूठी शिकायतों के जरिए समाज सेवी अशोक अरोरा की छवि को धूमिल करने का षडयंत्र रचा गया...इतना ही नहीं द्वेषता से लबरेज विरोधियों ने अपनी टीस निकलने के लिए बकायदा एक प्रादेशिक अखबार में विज्ञापन के रूप में इसे प्रकाशित भी करवाया...ताकि समाज सेवी "अशोक अरोरा" की प्रतिष्ठा को धूमिल किया जा सके...हालांकि कथित शिकायतों से लेकर इसके प्रचारित होने तक यह बात भी हर आम और खास के बीच स्पष्ट हो गई...की यह एक घिनौना कृत्य "अशोक अरोरा" की हत्या की साजिश रचने वाले उन लोगों का ही हो सकता है...?जो अपने नापाक मंसूबों में कामयाब न हो सके...और "धनराज लाला चौधरी" को हथियार बनाकर अशोक अरोरा के खिलाफ इस्तेमाल करने का प्लान बनाया और नीमच से लेकर भोपाल तक इन कथित शिकायतों को हवा देकर पुलिस प्रशासन और जनप्रतिनिधियों को गुमराह करने की कोशिश की गई...?

क्या अशोक अरोरा के खिलाफ जन्म ले रही एक नई साजिश....?

इस पूरे घटनाक्रम के बाद एक बात तो स्पष्ट है, की यहां सरकारी एजेंसियों को गुमराह करने के साथ ही प्रदेश के बड़े अखबार को पैसों के दम पर टूल के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है...और इससे साफ जाहिर है कि नीमच में समाज सेवी "अशोक अरोरा" की हत्या के षड्यंत्रकारीयों ने झूठी शिकायतों की एक नई साजिश को अंजाम देने की और कदम बढ़ाया है, इतना ही नहीं आशंकाएं व्यक्त की जा रही है, कि साजिश इससे गहरी भी हो सकती है...क्योंकि कथित तौर पर शिकायतकर्ता के बुते में तो इतना भी नहीं की वो बड़े अखबारों में महंगे विज्ञापन प्रकाशित करवा सके...सूत्रों के मुताबिक समाज सेवी अशोक अरोरा से जुड़े इस षडयंत्र को अंजाम देने में "दो राकेश" और "दो धन" की भूमिका सक्रिय तौर पर काम कर रही है...और स्थानीय प्रशासन सहित शीर्ष जांच एजेंसियों को गुमराह कर उन्हें महज टूल की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है...ऐसे में पुलिस प्रशासन को भी इस मसले पर गंभीरता दिखानी होगी....और संबंधितों के मोबाइल सर्विसलांस पर लेने की दिशा में भी कदम बढ़ाना चाहिए.....ताकि "अशोक अरोरा" के खिलाफ जन्म ले रही एक नई साजिश का पर्दाफाश हो सके और इसके गुनहगार सलाखों के पीछे धकेले जा सके....ताकि पूर्व में हुए प्राणघातक हमले जैसे संगीन अपराध की पुनरावृति न हो.....और शांत प्रिय नीमच शहर की आबो हवा में जहर ना घुले...!

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